अगर हमारा मन खाली हो जाये

 

दोस्तों अगर हमारा मन खाली हो जाये तो हम उसमें कुछ ऐसी चीज़ डाल सकते हैं.  कुछ ऐसे विचार डाल सकते हैं.  जिससे हम अपने मन की बक बक को शांत कर सकते हैं.  जो विचारों का सैलाब हमारे मन में चलता रहता है.  उन्हें हम बौद्ध  अच्छी तरह रोक सकते हैं.  और दोस्तों अगर एक बार मन की बक बक रुक जाए.  तो फिर हम मन से जो चाहे वह करवा सकते है.  इसीलिए अगर आप मन की बक बक को शांत करवाना चाहते हो.  तो इस कहानी को आखिर तक जरूर सुनियेगा. तो  एक नगर की बात है.

उस नगर में एक नौजवान युवक रहता था.  उसका नाम दीपक  था.  उसे एक समस्या थी.  और उसकी समस्या यह थी कि उसका मन हर समय भटकते रहता था.  उसके मन में हर समय कोई ना कोई नकारात्मक विचार चलते रहते थे.  उसके मन की बक बक कभी शांत नहीं होती थी.  वह जब भी कुछ सोचकर करता.  तो कुछ अलग ही कर देता.  कभी वह अपने अतीत के बारे में सोचकर पछताता था.  कि काश मैंने उस काम को उस समय को कुछ ऐसा कर दिया होता.  उस काम को वैसा कर दिया होता

या फिर वह अपने भविष्य के बारे में सोचता रहता.  और डरता रहता कि कहीं भविष्य में ऐसा हो गया.  तो क्या होगा कहीं में असफल हो गया तो क्या होगा.  अगर मुझसे कोई गलती हो गयी.  तो लोग मेरा मजाक उड़ाना शुरू कर देंगे.  और ऐसे ही कई सारे नकारात्मक और असफलता से भरे विचार उसके मन में आते रहते थे.  दीपक  हमेशा ही अपने विचारों में खोया रहता.  वह अपने विचारों से मुक्ति पाना चाहता था.  दीपक  चाहता था कि उसके मन में कोई भी फालतू विचार

कभी भी ना आए.  लेकिन हर समय विचारों का सैलाब उसके मन में उठता ही रहता.  इसीलिए जीवन में वो बौद्ध  परेशान हो गया था.  फिर एक दिन उसे किसी ने बताया.  कि यहाँ पास के ही जंगल में एक बौद्ध भिक्षु रहते है.  उसके पास जाओ वह तुम्हारी मानसिक समस्या का समाधान अवश्य कर देंगे.  यह सुनकर दीपक  तुरंत ही बौद्ध भिक्षु के पास चला जाता है.  और अपनी सारी समस्या उन्हें बताता है.  बौद्ध भिक्षु भी दीपक  की बातों को बड़े ही ध्यान से सुन लेते है.  और उसे कहते हैं कि तुम मुझसे क्या जानना चाहते हो.

यह सुनकर दीपक  कहता है.  हे गुरुदेव मैं अपने मन को शांत वो खाली करना चाहता हूँ.  मैं आपसे यह जानना चाहता हूँ.  कि मन को खाली वह शांत कैसे करते हैं.  मेरा मन हर वक्त   विचारों से भरा रहता है.  मेरा ध्यान एक जगह लग ही नहीं पाता है.  जिसके कारण मेरे हर काम में समस्या आ जाती है.  मैं एक चीज़ करता हूँ.  तो नकारात्मक विचारों के कारण दूसरी चीज़ पर पहुँच जाता हूँ.  मेरा मन एक जगह ठहरता ही नहीं है.  और यूं ही हर दिन मेरे मन में हज़ारों विचार चलते रहते है.

और ये कब होता है क्यों होता है.  मुझे कुछ पता नहीं चलता.  बहुत  देर बाद मुझे एहसास होता है.  कि मैं क्या करने बैठा था और मैं क्या कर रहा हूँ.  गुरुदेव मैं अपने मन को विचारों से खाली कर देना चाहता हूँ.  मैं चाहता हूँ कि मेरे मन में एक भी विचार ना आए.  जब मैं चाहू तभी मेरे मन में विचार आए.  फिर बौद्ध  भिक्षु ने कहा.  किसी समस्या का समाधान तभी निकाला जाता है.  जब हम उस समस्या की जड़ तक पहुँच जाते हैं.  समस्या को ठीक से समझते हैं और जानते हैं.

आगे बौद्ध भिक्षु कहते हैं, जिंस मन को तुम खाली करना चाहते हो.  क्या तुमने उस मन को कभी भी थोड़ा बहुत भी समझा है.  जाना है.  यह सुनकर दीपक  ने कहा कि महाराज मैंने अपने मन को जानने की बहुत  कोशीश की है.  लेकिन मैं जितना इसके बारे में जानता हूँ.  मेरा मन उतना ही रहस्यमय हो जाता है.  फिर बौद्ध  भिक्षु ने उसी युवक को एक घड़ा देते हुए कहा.  कि जाओ इस घड़े में छोटे छोटे पत्थर भरकर ले कर आओ.  फिर वो युवक वहाँ से गया और छोटे छोटे पत्थर भरकर

लेकर आया.  और उस घड़े को बौद्ध भिक्षु के पास रख दिया.  फिर बौद्ध भिक्षु ने उसी युवक से कहा.  कि इस घड़े को तुम अपना मन समझो और इस गड्ढे में भरे पत्थरों को अपने विचार समझो.  अब इस घड़े में और पत्थर डालो उस युवक ने घड़े में और पत्थर डालना शुरू किया.  क्योंकि घड़ा  पहले से भरा हुआ था.  एक दो पत्थर डालने के बाद बाकी सारे पत्थर नीचे गिरने लगे.  फिर बौद्ध  भिक्षु ने उसी युवक  से कहा, रुको, ज़रा ध्यान से देखो.  अब घड़े में पत्थर नहीं आ रहे हैं.

बल्कि पत्थर नीचे गिर रहे हैं.  क्योंकि यह एक खड़ा है जो इसमें आ सकता था.  वो आ गया अब इसमें और पत्थर नहीं आएँगे.  अगर दूसरे पत्थर डालने हैं.  तो पहले वाले पत्थरों को निकालना होगा.  यह सुनकर उसी युवक ने  कहा, गुरुदेव मैं आपकी बात समझ गया हूँ.  कि आप मुझे क्या बताना चाहते हैं.  हमें अपने मन को विचारों से ही खाली कर देना चाहिए.  दीपक  की यह बात सुनकर बौद्ध  भिक्षु मुस्कुराने लगे और कहा.  पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो.

उसके बाद मन को खाली कर लेना.  फिर बौद्ध  भिक्षु ने उस युवक को कहा कि हमारा मन एक घड़े के बिल्कुल उल्टा है.  क्योंकि घड़े को तुम पत्थरों से भर सकते हो.  लेकिन मन को विचारों से नहीं भर पाओगे.  क्योंकि मन तो हमेशा खाली रहता है.  यह सुनकर उसी युवक  ने कहा.  गुरुदेव मुझे आपकी बातें कुछ समझ नहीं आ रही है.  मन अगर खाली रहता है.  तो फिर हम उसे खाली करना क्यों चाहते हैं.  फिर मन को खाली करने की क्या ही आवश्यकता है.  फिर बौद्ध भिक्षु ने उससे कहा कि इस घड़े से एक एक करके पत्थरों को

बाहर निकालो.  दीपक  ने वैसा ही किया वह घड़े में से एक एक करके पूरे पत्थरों को बाहर निकालता रहा.  और ऐसा करते करते अंततः घड़ा खाली हो गया.  फिर बौद्ध  भिक्षु ने उसी युवक  से कहा.  देखा तुमने जब एक एक करके तुमने पत्थरों को बाहर निकाला.  तो यह घड़ा खाली हो गया.  अब तुम इस घड़े में कोई भी पत्थर डाल सकते हो.  दूसरे पत्थर डाल सकते हो या फिर उन्ही पत्थरों को दुबारा डाल सकते हो.  आधा भर सकते हो या फिर पूरा भी भर सकते हो.  फिर वह युवक कहता है.

गुरुदेव मैं भी तो यही कह रहा हूँ. कि मुझे अपने मन को खाली करना है.  यह तो एक पत्थर है जिसे आसानी से निकाला जा सकता है.  और घड़े को खाली किया जा सकता है.  लेकिन गुरुदेव मैं अपने मन को खाली कैसे करूँ.  फिर बौद्ध  भिक्षु ने कहा इस घड़े में एक पत्थर डालो और दो पत्थर निकालो.  यह सुनकर उसी युवक ने  कहा गुरुदेव, यह कैसे हो सकता है.  जब इस घड़े में एक पत्थर होगा.  तो एक ही पत्थर निकलेगा, दो कैसे निकलेंगे.  फिर बौद्ध भिक्षु ने उससे कहा.

ऐसा नहीं हो सकता है तो ऐसा ही करो.  कि इस घड़े में दो पत्थर डालो और चार निकालो.  दीपक  ने कहा महाराज ऐसा कैसे हो सकता है.  ये कोई चमत्कारिक घड़ा तो है नहीं.  कि एक डालो तो दो निकल आएँगे.  दो डालो तो चार निकल आएँगे.  ये सुनकर बौद्ध  भिक्षु ने कहा.  यह घड़ा तो चमत्कारिक नहीं है.  लेकिन तुम्हारा मन तो चमत्कारिक है.  उसमें से अगर तुम एक विचार बाहर निकालते हो.  तो उसके साथ दो विचार आते हैं.  और जब तुम उन दो विचारों को पकड़ते हो.

तो उसके साथ चार विचार निकलते हैं.  और फिर ऐसा करते करते विचारों की एक लंबी श्रृंखला बन जाती है.  और फिर तुम कहीं नहीं रुकते एक के बाद एक विचारों को पकड़ते जाते हो.  यह मिट्टी का घड़ा तो पत्थरों से भर जाएगा.  लेकिन तुम्हारा मन कभी नहीं भरता.  वह हमेशा खाली है लेकिन वह खाली नहीं करता.  यह इस मन की माया है.  कि सब कुछ है लेकिन फिर भी कुछ नहीं.  फिर उसी युवक  ने कहा, गुरुदेव मैं आपकी बात समझ रहा हूँ.  लेकिन क्या मैं हमेशा

अपने विचारों के जाल में ही फंसा रहूंगा.  क्या मन के इस मायाजाल से निकलने का कोई रास्ता नहीं है.  फिर बौद्ध भिक्षु ने कहा, इस मिट्टी के घड़े में आधे पत्थर भर दो.  फिर उस युवक ने ऐसा ही किया फिर बौद्ध भिक्षु ने कहा.  अब इन पत्थरों में से कोई एक पत्थर चुनों.   और उस पत्थर की एक छोटी सी मूर्ति बनाकर मुझे दे दो.  मैं जानता हूँ कि तुम एक अच्छे कलाकार हो.  दीपक  ने एक पत्थर निकाला और उस पत्थर को बौद्ध भिक्षु के सामने ही तराशने लगा.  पत्थर को तराशते युवक

से लगा कि ये पत्थर अच्छा नहीं है.  फिर उसने दूसरा पत्थर घड़े से निकाला.  लेकिन उसे वो पत्थर भी पसंद नहीं आया.  फिर उसने तीसरा पत्थर निकाला.  लेकिन वह तीसरा पत्थर भी उसे पसंद नहीं आया.  उसका रंग अच्छा नहीं था.  ऐसा करते करते उसी युवक  ने सारे ही पत्थरों को बाहर निकाल दिया.  उस युवक को ऐसा करते हुए बौद्ध भिक्षु बड़े ही ध्यान से देख रहे थे.  फिर बौद्ध भिक्षु ने उससे कहा कि जो तुमने सबसे पहले पत्थर निकाला था.  उस पत्थर को यह समझकर तराशों  कि इसके बाद तुम्हारे पास

कोई और पत्थर नहीं है.  और यह एक ही पत्थर तुम्हारे पास है.  फिर उसी युवक  ने जैसा गुरुदेव ने कहा.  उसी एक पत्थर को लेकर तलाशना शुरू किया.  और उसने उस पत्थर से एक बौद्ध  ही सुन्दर मूर्ति बनाई.  और बौद्ध भिक्षुओं को भेंट की और बौद्ध भिक्षु से कहा.  गुरुदेव इस पत्थर से इतनी सुन्दर मूर्ति बन सकती थी.  मैं ये सोच भी नहीं सकता था.   उस युवक की बात सुनकर बौद्ध  भिक्षु ने कहा कि जब तुम्हारे पास और कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है.  तब हम उस विकल्प में ही

संपूर्ण ऊर्जा लगाते हैं.  और उसी को सबसे बेहतर बनाते हैं.  और जब हमारे पास कई सारे विकल्प होते हैं.  तो हम पत्थर चुनते भी नहीं और मूर्ति बनती भी नहीं.  हमारा मन भी एक विचार के पीछे हजारों विकल्प खोल के रख देता है.  और एक मुख्य विचार को छोड़ कर उन हजारों फालतू के विचारों में उलझकर.  हम रह जाते हैं फिर उस युवक ने कहा.  गुरुदेव मैं आपकी बातों को बहुत अच्छे से समझ गया हूँ.  लेकिन अब मुझे क्या करना चाहिए.  कृप्या आप मेरा मार्गदर्शन करें

बौद्ध भिक्षु ने उसी युवक  से कहा.  कि मन को खाली करना साफ करना एक दो दिन का काम नहीं है.  यह बहुत  लंबी प्रक्रिया है.  तो क्या तुम इसके लिए तैयार हो.  वह युवक कहता है जी गुरुदेव तैयार हूँ.  चाहे कितनी भी लंबी प्रक्रिया क्यों ना हो.  फिर बौद्ध भिक्षु ने उसी युवक से कहा.  कि मन को खाली पर नकारात्मक विचारों से दूर रखने के छह तरीके हैं.  आओ उन्हें एक एक करके समझते हैं.  पहला तरीका है कि ऐसे लोगों का साथ छोड़ दो जो तुम्हें कमजोर

पिछड़ा हुआ.  लक्ष्यहीन महसूस कराएं अक्सर हमारे आसपास ऐसे लोग होते ही है.  जो हमसे पद और धन में ऊपर होते हैं.  और इसी पद और धन के घमंड में वो अपने नीचे से लोगों को कुछ भी नहीं समझते.  इसीलिए ऐसे लोगों के पास रहना ही नहीं चाहिए.  और ऐसे लोग अपने से छोटे लोगों को हमेशा यही महसूस कराते हैं.  कि आप कितने छोटे है और इसीलिए वह छोटे लोग.  अपने जीवन में कुछ बड़ा हासिल कर ही नहीं सकते.  इसके अलावा कई बार हमारे मित्र

और घर परिवार के सदस्य भी ऐसे होते हैं.  जो अक्सर हमें छोटा महसूस कराते हैं.  हमें नीचा दिखाने की कोशीश करते हैं.  लोगों के सामने हमारा मजाक बनाते हैं.  तो ऐसे लोगों से जितना दूर हो सके उतना दूर रहो.  ये लोग ऐसे होते है कि तुम्हारी नजरों से तुम्हारी गरिमा को दूर करके.  तुम्हें लक्ष्यहीन बनाते हैं,  और फिर तुम्हे खुद की काबिलियत पर शक होना शुरू हो जाता है.  तुम्हारे अंदर खुद के प्रति नकारात्मक भावनाए आ जाती है.  और यह नकारात्मक विचार

हमें मानसिक तनाव और चिंता की ओर ले जाते हैं.  फिर बौद्ध भिक्षु दूसरा तरीका बताते हुए कहते हैं.  कि तुम बौद्ध  ही कम और चुनिंदा लोगों को ही अपना मित्र बनाओ.  ऐसे लोगों को ही अपना मित्र बनाओ जिससे तुम कुछ सीख सकते हो.  जिनकी तुम इज्जत कर सकते हो.  जो तुम्हारी भावनाओं को समझ सकें.  जिनकी सोच तुम से मेल खाती हो.  जो जीवन मैं तुम्हें आगे बढ़ने में सहायता करें.  हमारे जीवन और चरित्र में हमारे माँ बाप के बाद.  हमारे मित्रों का ही सबसे ज्यादा योगदान होता है.

इसीलिए मित्रों का सही होना भी बहुत  आवश्यक है.  ऐसा कहा भी जाता है.  तुम उन पांच लोगों का प्रतिबिंब हो.  जिनके साथ तुम सबसे ज्यादा समय  बिताते हो.  अगर तुम्हारे आस पास के पांच लोग जिनके साथ तुम सबसे ज्यादा समय  बिताते हो.  वे ईमानदार है तो तुम भी धीरे धीरे ईमानदार होना शुरू कर दोगे.  और अगर वो पांच लोग अमीर हैं.  तो तुम भी धीरे धीरे अमीर बनना शुरू कर दोगे.  कहने का अर्थ  यही है कि तुम वैसा ही बन जाते हो.  जिसतरह के लोगों के साथ

तुम अपना समय व्यतीत करते हो.  किसी महान दार्शनिक ने कहा था.  कि तुम मुझे किसी भी इंसान के मित्रों से मिलवा दो.  मैं उसके मित्रों को देखकर उस इंसान का भविष्य बता दूंगा.  हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम लोगो को ना नहीं बोल पाते हैं.  जिन लोगों के साथ हम रहना पसंद भी नहीं करते है.  ना चाहते हुए भी हमें उन नकारात्मक लोगों के साथ समय  बिताना पड़ता है.  इसीलिए सबसे पहले हमें अपने जिंदगी में उन लोगों को ना कहना आना पड़ेगा.  जिनके साथ रहकर हमें लगता है.

की ये हमारी जिंदगी खराब कर रहे हैं.  अगर ये हमारी जिंदगी में ना हो तो शायद हम ज्यादा खुश रहेंगे.  बौद्ध  भिक्षु आगे कहते हैं.  तीसरा तरीका है कि तुम कभी भी अपना अतीत नहीं बदल सकते. लेकिन तुम अपना भविष्य अवश्य बदल सकते हो.  इसीलिए तुम्हे पूरी तरह से वर्तमान में रहते हुए.  उन चीजों पर उन कामों पर ध्यान दो.  जो तुम्हारे नियंत्रण में हैं, जिन्हें तुम आज कर सकते हो.  अभी कर सकते हो बौद्ध  भिक्षु कहते हैं.  मेरी एक बात हमेशा याद रखना.

केवल वर्तमान में रहकर भविष्य को संवारा जा सकता है.  अतीत में रहकर नहीं.  इसीलिए वर्तमान में जीने की आदत डालो.  चौथा तरीका है कि तुम सवस्थ और पौष्टिक खाना खाओ.  हमारा शरीर ऊर्जा से चलता है.  और हम जैसा खाना खाएंगे.  वैसे ही ऊर्जा हमारे शरीर को मिले गी.  अगर हमारा शरीर सवस्थ नहीं रहेगा तो हमारा मन सवस्थ कैसे रहेगा. जब शरीर कमजोर व बीमार रहता है.  तो मन में कई सारे नकारात्मक विचार आते हैं और सवस्थ शरीर में

सवस्थ दिमाग का वास होता है.  इसीलिए शरीर को सवस्थ व मजबूत रखना हमारी जिम्मेदारी है.  बौद्ध  भिक्षु कहते हैं कि पांचवां तरीका यह है कि रोज़ ध्यान करो.  ध्यान करने का सबसे उपयुक्त समय सुबह या फिर रात को सोने से पहले होता है.  लेकिन अगर तुम्हें ध्यान में गहरा जाना है.  तो सबसे उपयुक्त समय रात का ही होता है.  रात में सोने से पहले ध्यान करने से नींद में भी सुधार होता है.  और बौद्ध  गहरी नींद आती है ध्यान करने के लिए तुम अपनी सांसों पर

ध्यान केंद्रित कर सकते हो.  या फिर तुम अपने मन में उठने वाले विचारों पर भी अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हो.  मन में उठने वाले विचारों पर ध्यान केंद्रित करने से ध्यान करने वालों का ज्यादा फायदा होता है.  क्योंकि इसमें आसानी से गहरे ध्यान में उतरा जा सकता है.  अगर तुम ध्यान नहीं कर सकते हो तो.  रोज़ खुद के साथ अकेले में समय बिताओ.   खुद के व्यवहार को समझो, देखने की कोशीश करो.  कि मन में किस तरह के विचार उठ रहे हैं.  और क्यों उठ रहे हैं.

बौद्ध भिक्षु आगे बताते हुए कहते हैं.  छठा तरीका है कि तुम नए नए जगह घूमने जा सकते हो.  क्योंकि एक पुरानी कहावत है.  कि एक लंबी यात्रा आपको सौ किताबों के बराबर ज्ञान देती है.  गौतम बुद्ध अपने जीवनकाल में नौ महीने लगातार घूम रहे थे.  उनके भ्रमण करने का यही कारण था.  कि नए नए जगह जाने से ज्ञान की प्राप्ति के साथ साथ मन को एक नयापन भी प्राप्त होता है.  नई जगह घूमने जाने पर हमारा मन उत्साहित रहता है.

फिर बौद्ध  भिक्षुओं कहते हैं, मन के जाल में कभी मत फंसो मन को खाली करने की कोशीश मत करो.  जीवन में ध्यान करना सीखो.  अपने ध्यान को केन्द्रित करो.  अपने ध्यान में एकाग्रता लाओ और जीवन में जो कर रहे हो.  उसे पूरी मेहनत के साथ अंतिम समझकर करो.  उस काम को ऐसे करो की उसके बाद तुम्हें और कुछ नहीं करना है.  और जब फिर दूसरे विचार पर कार्य करो.  तो बस उसी पर कार्य करो.  किसी तीसरे विचार पर नहीं मन के माया जाल से निकलना

इतना आसान नहीं.  लेकिन ध्यान करने से सब कुछ पाया जा सकता है.  दोस्तों आशा करते हैं.  आज के इस कहानी से आपने जरूर कुछ ना कुछ मूल्यवान सीखा होगा.  कहानी अच्छी लगी हो तो विडिओ को एक लाइक और चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर दीजिएगा. मिलते हैं अगले विडिओ में तब तक के लिए धन्यवाद और कमेन्ट बॉक्स में यस जरुर लिखे क्योंकि यस लिखने से मोटिवेशन मिलता विडियो बनाने का.  तो  धन्यवाद मिलते हैं नेक्स्ट विडियो में.

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