अपने मन की शक्तियों को जान लो जीवन बदल जाएगा- गौतम बुद्ध, Buddist Story in hindi

हमारा मन। इस दुनिया का सबसे पावरफुल हथियार है। हमारे जीवन के प्रत्येक घटना के साथ। सिर्फ और सिर्फ हमारा मन जुड़ा होता है। इस दुनिया में जीतने भी ज्ञानी हुए,  जीतने भी सक्सेसफुल लोग बने। सिर्फ और सिर्फ अपने मन की शक्ति के कारण ही बने। लेकिन हम में से बहुत से लोग। क्यों इन शक्तियां को समझ नहीं पाते हैं? बुद्ध कहते हैं हम भी इंसान हैं, आप भी इंसान है। हमारे अंदर आपके अंदर सबके अंदर सामान सकती है। लेकिन क्यों? क्यों हम उसे समझ नहीं पाते हैं। जो इन शक्तियां को समझ गया। वह ज्ञानी बन गया, जो अपने मन की शक्ति यों को संग्रह करना सीख लिया।

उसके लिए उसका जीवन आसान हो जाता है। वो अपने जीवन में जो कुछ भी चाहता है उसे वो पा लेता है। गौतम बुद्ध कहते हैं कि सभी में बुद्ध बनने की योग्यता है। क्योंकि वो जानते है की शक्ति वो हर इंसान में मौजूद है। लेकिन उस शक्ति का सही उपयोग हम नहीं कर पाते हैं। कुछ कुछ शक्तियां का उपयोग हम कर लेते हैं और कुछ शक्तिओं को हम व्यर्थ में ही छोड़ देते हैं। आइए इसे एक छोटी सी कहानी से समझते हैं। इस कहानी को अंत तक जरूर समझना। अगर आपने इसे समझ लिया तो आप अपने जीवन में, अपने मन के द्वारा अपने मन की शक्ति के द्वारा बहुत कुछ कर सकते हैं बहुत कुछ पा सकते हैं।

एक गुरु का शिष्य। अपने गुरु की तरह बनना चाहता था। गुरु भी अपने उसी सी को अपने से महान बनना देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने हर तरह की शिक्षाओं से दी। लेकिन शिष्य को बहुत ही जल्द बहुत कुछ बनना था। शिष्य  को हमेशा लगता था कि गुरु से सब कुछ नहीं बता रहे हैं जिसकारण वो सफल नहीं हो पा रहा है। तब उसने सोचा क्यों ना मैं गुरु का पीछा करूँ? वो दिन भर क्या क्या करते हैं? क्यों ना मैं उन्हें देखूँ? तब से वे चुप चुप कर गुरुदेव को देखने लगे। सुबह उठने से लेकर शाम तक। गुरु क्या क्या करते थे, कहाँ जाते थे, कैसे ध्यान करते थे?

कैसे भोजन करते थे? क्या बोलते थे, किस तरह चलते थे? ये सभी चीजें उनका शिष्य  उसे छुप छुप कर देखने लगा। और वो अभी वही सब कुछ करने लगा जो उसके गुरु दिनचर्या में करते थे। 1 दिन गुरु ने सुबह देखा कि उनका शिष्य उनके साथ साथ चल रहा है। वो अभी उस नदी में नहाया जहाँ पर गुरुदेव नहा रहे थे। वो अभी उस चट्टान पर पहुंचा जहाँ पर बैठकर गुरुदेव ध्यान करते थे।और गुरु के चट्टान पर बैठने से पहले ही। वो उस चट्टान पर बैठ गया और ध्यान करने लगा। यह देखकर गुरुदेव मुस्कुराए और वहीं पास के ही दूसरे चट्टान में जाकर बैठ गए।

और ध्यान करने लगे। शिष्य ने सोचा की गुरुदेव कुछ कहेंगे। लेकिन किसी की आवाज ना आते देख। उसने अपनी आंखें खोलकर देखा। फिर उसने सोचा की शायद गुरुदेव महीने में किसी 1 दिन उस दूसरे चट्टान पर बैठकर ध्यान करते हैं। शिष्य की ये हरकतों को देखकर गुरु को पता चल गया था कि उनका शिष्य  उनके तरह बनने के लिए उनका नकल कर रहा है। तब 1 दिन गुरु एक पेड़ की डाल पर बैठकर सो गए। शिष्य ने सोचा शायद रात में पेड़ के डाल पर सोने से कुछ प्रभाव पड़ता होगा। इसीलिए गुरुदेव वहाँ पर सोये है। और वो अभी। उसी पेड़ की दूसरी डाल पर जाकर सो गया।

रात को कुछ गिरने की आवाज आयी। आवाज सुनकर गुरुदेव की आंखें खुली तो उन्होंने देखा। के नीचे जमीन पर। उनका शिष्य  से गिरा  हुआ है और वो चिल्ला रहा है। उन्होंने शिशु को उठाया। और कहाँ? कि जब भी तुम बिना सोचे समझे। किसी दूसरे के राह पर चलते हो या उसके नकल करने की कोशिश करते हो, तब तुम ऐसे ही गिरोगे जैसे आज गिरे हो । शिष्य ने कहा गुरुदेव, मैं तो सिर्फ आप की तरह बनने की कोशिश कर रहा था। गुरु ने कहा कि तुम अगर बंदर की तरह नकल करने लगोगे। तो हो सकता है कि बहुत प्रयास करने बाद। हर काम करने लगूं। जो बंदर करते हैं।

पर क्या इंसान होने के बावजूद बंदर होना उचित होगा? शिष्य  ने कहा, नहीं गुरुदेव इंसान बनना ही ज्यादा उचित है। लेकिन गुरुदेव, मैं अपने मकसद में कैसे सफल बन सकता हूँ?  मैं कैसे। अपने आप को जान सकता हूँ पहचान सकता हूँ। मैं तो बस यह देख रहा था कि आप क्या करते है सायद उससे मुझे कोई रास्ता मिल जाए। गुरु ने कहा, जिसप्रकार शरीर को चलाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन और शुद्ध है तो शरीर में शक्ति भी शुद्ध होती है। हमारा शरीर सवस्थ रहता है, शक्तिशाली रहता है, बलवान रहता है। उस शरीर से जो भी कार्य करना चाहो।

तुम करवा सकते हो। लेकिन तुम खराब सड़क कला रखा हुआ बासी खाना खाओगे तो क्या होगा? शिष्य ने कहा शरीर की शक्ति खत्म हो जाएगी। हमारा शरीर बीमार पड़ जायेगा। फिर गुरु ने कहा, इसी तरह हमारे पास मन की शक्ति होती है। और इसमें इतनी शक्ति होती है। की कुछ भी पाया जा सकता है। कुछ भी बना जा सकता है। अपने आप को जाना जा सकता है पहचाना जा सकता है। बुद्धत्व को प्राप्त किया जा सकता है।

लेकिन मन की शक्ति को ना पाया तौला नहीं जा सकता है। शिष्य ने कहा आप तो ज्ञानी है, ध्यानी है इसलिए आपके पास मन की शक्तियां हैं। जिनका उपयोग आप कर सकते हैं। लेकिन हम उपयोग करते हैं तो कुछ भी नहीं होता। गुरु ने कहा शक्ति तो तुम्हारे पास भी है। और उतनी ही है जितनी मेरे पास है या किसी और के पास है तो गुरुदेव फिर हम सभी लोग कामयाब क्यों नहीं होते? हमारे जैसे बहुत से लोग हमेशा असफल होते रहते है, ऐसा क्यों? गुरु ने कहा, क्योंकि मन की शक्ति यों का हम सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाते हैं।

बल्कि मन की शक्तियां हमारा उपयोग कर लेती है। शिष्य  ने कहा क्या आप मेरे मन की शक्तियां दिखा सकते हैं? क्योंकि मैं इसे समझ नहीं पा रहा हूँ। गुरुदेव बोले हाँ बिलकुल मैं बिलकुल दिखा सकता हूँ। पर इसके लिए तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। क्या तुम कर सकोगे? शिष्य ने कहा। हाँ अवश्य करूँगा। मुझे क्या करना है? गुरु ने कहा ज्यादा कुछ नहीं करना है, बस इतना ही करना है। की जीतने भी विचार तुम्हारे मन में आये।

उन विचारों को। एक एक लकड़ी के सामान समझना है। और उन लकड़ियों को उठाकर। उस झोपड़ी पर रखते जाना है। और ये तुम्हें पूरे एक महीने के लिए करना होगा। ध्यान रहे। एक विचार के लिए एक लकड़ी का होना आवश्यक है। जैसे कोई भी विचार से। कोई लकड़ी छूट न जाए। एक काम और करना अपने उस विचारों को। जो तुम्हें ज्ञान और ध्यान प्राप्त करने के लिए आए। उन विचारों की लकड़ियों को। तुम्हें उन झोपड़ियों के बाहर रखना होगा। शिष्य ने कहा। जो आज्ञा गुरुदेव। आप जैसे कह रहे हैं।

मैं वैसा ही करूँगा और शिष्य ने विचारों को देखना। और उन विचारों से लकड़ियों को उठाकर झोपड़ी में रखना शुरू कर दिया। धीरे धीरे एक महीना बीत गया। और शिष्य? पूरा एक महीना बीतने के बाद। शिष्य गुरु के पास गया और बोला गुरुदेव एक महीना हो चूका है। जैसा आपने कहा था मैंने बिल्कुल वैसा ही किया है। अब आप मुझे मेरे मन की शक्ति को दिखाएं। गुरु शिष्य के साथ उस झोपड़ी पर पहुंचे। गुरु ने देखा की पूरी झोपड़ी छोटी छोटी लकड़ियों से भर गई है। यहाँ तक की कुछ लकड़ियां बाहर भी गिरी हुई है।

गुरु ने कहा, वह लकड़ियां कहाँ है, जो तुम्हारे ज्ञान और ध्यान के विचारों की है। शिष्य  ने बाहर पड़ी कुछ लकड़ियों को लाकर गुरुदेव को दिया। और बोला यहाँ वही लकड़ियां है। गुरु ने उस लकड़ियों को गिनने के लिए कहा। जब से शिष्य  ज्ञान और ध्यान की लकड़ियों को गिना। तो वो 26 लकड़ियां पाया। गुरु ने कहा, बस तुम्हें एक काम और करना है। यह काम बहुत छोटा सा है। क्या तुम कर सकोगे? शिष्य ने कहा जी गुरुदेव आप जो कहेंगे मैं जरूर करूँगा।

बताइए, मुझे क्या करना है? गुरु बोले ये जो लकड़ियां तुमने इकट्ठे किए हैं। इसे एक साथ बांधकर उस नदी में फेंक कर आओ। गुरु की ये बात सुनकर शिष्य घबरा गया। और बोला गुरुदेव ये कैसे हो सकता है? इतने लकड़ियों का भार मैं कैसे उठा पाऊंगा। गुरु बोले क्यों नहीं उठा पाओगे? जब इतने विचारों का बाहर  तुम दिमाग में रखकर घूमते हो तो इन लकड़ियों को क्यों नहीं उठा सकते? शिष्य ने कहा, लेकिन गुरुदेव विचारों  में तो वजन नहीं होता।

गुरु बोले, विचारों में भी वजन होता है, देखो तुम्हारे बेकार के विचारों के नीचे। तुम्हारे मकसद के विचार, ध्यान और ज्ञान के विचार कितने हैं? तुमने अपने मन की सारी शक्तियां इन बेकार के विचारों में लगा दी है। जो झोपड़ी में भरी पड़ी है और केवल 26 लकड़ियों के साथ ही तुम ध्यान और ज्ञान को पाना चाहते हो। शिष्य ने कहा, आप ठीक कह रहे हैं, गुरुदेव। पर मैं अब क्या करूँ? गुरु ने कहा, तुम अभी अपने ज्ञान और ध्यान की ओर बढ़ना चाहते हो और यही तुम्हारा लक्ष्य है तो इन बेकार के विचारों को नदी में बहा दो। शिष्य ने कहा, लेकिन गुरुदेव।

इतनी सारी लकड़ियों को मैं सर पर नहीं उठा पाऊँगा। गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा। तो एक एक करके इसे फेंक दो। एक महीने में दो महीने में जितना भी समय लगे लगाव। लेकिन अपने सर से अपने मन से इन बेकार के विचारों को फ़ेक डालो? याद रहे एक विचार छूटने पर। नदी में सिर्फ एक ही लकरी फेकना हैं,   शिष्य ने जिन लकड़ियों को एक महीना में इकट्ठा कर लिया था। उसे फेंकने में 3 साल लग गए। एक विचार छोड़ने पर वह एक लकड़ी नदी में फेंक देता। अब उसके पास केवल 26 लकड़ियां ही बची थी, जो उसके ध्यान और ज्ञान की थी।

उसके पूरे मन की शक्ति। ध्यान और ज्ञान पर लगी हुई थी। कोई भी बेकार के विचार उसके मन में नहीं था। 1 दिन ध्यान करते हुए वो उठा और गुरुदेव के पास गया और कहा। गुरुदेव, ऐसा लगता है कि मैं कहीं अटक गया हूँ। और मैं आगे नहीं जा पा रहा हूँ। गुरु ने कहा उन 26 लकड़ियों को छोड़ने का समय हो गया है, छोड़ दो उन्हें। शिश्न 26 लकड़ियों को छोड़ने में 1 साल लगा दिया और जब उसने आखिरी लकड़ी को नदी में डाला तब वो वहीं नदी के किनारे बैठ गया और बैठा ही रहा।

गुरु ने अपने शिष्य को नदी के किनारे ढूंढ़ते हुए वहाँ पहुंचे। गुरु शिष्य को देखकर वह जान गए। कि वह संपूर्ण शक्ति में खेल है। शिष्य  ने गुरु की ओर देखा। और दोनों ही एक दूसरे की ओर देखते हुए। बिना कुछ कहे वापस चले गए। हमें भी अपने जीवन में मन की शक्ति यों का उपयोग करना सीखना चाहिए। अगर हमने ऐसा कर लिया तो हम जीवन में वो सभी असंभव काम जो कुछ भी हम पाना चाहते हैं, हम उसे पा सकते हैं। हमारी शक्ति हजारों लाखों विचारों के रूप में हमारे मन में बिखरी पड़ी है। इसमें कुछ अच्छे विचार भी है। कुछ बुरे विचार भी है।

बस हमें अपने अच्छे विचारों को पकड़ना हैं, अगर हम अच्छे विचारों को नहीं पकड़ेंगे। तो बुरे विचार तुरंत ही हमारे पर असर डालने लगे गा और हम नकारात्मकता की ओर नेगेटिव एनवायरनमेंट की ओर बढ़ते चले जाएंगे। इसीलिए भगवान बुद्ध बोलते हैं। की। जब भी आपके मन में अच्छे विचार आये, उसे तुरंत पकरे। उन विचारों पर तुरंत काम करना प्रारम्भ कर दें।

मन के शक्तियों का उपयोग करना बहुत ही सरल हैं,  बस आपको उतना ही करना है जो आपको सबसे ज्यादा सटीक लगे लेकिन हम एक काम के साथ हजारो कामो करने लगते हैं और उसी में डिस्टेंस भी हो जाते हैं, हम विचलित भी हो जाते हैं,  और इस वजह से हमारे मन के सरे शक्तिया बिखर जाती हैं

इसीलिए आप किस काम के लिए बने हैं, उसे समझिए। भगवान आपको जिसका काम के लिए बनाया है, वैसे विचार आपके मन में बार बार आएँगे। बस जरूरत है आपको उसे पकड़ने की, आपको उसे समझने की, उसे सही दिशा निर्देश देने की। दोस्तों, इस कहानी से आप ने क्या समझा? अपने विचारों को अपनी भावनाओं को एक कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं। क्या पता आप के एक कमेंट से किसी का जीवन बदल जाएगा?

धन्यवाद। 

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