जितना बोलेगे जितना फसोगे

 एक गुरु का एक शिष्य बहुत ही बाचाल था। वो हर समय बोलता रहता,  दिनभर इधर उधर की बाते करता, भिख्छाटन के लिए जाता तो हर घर से एक नई कहानी लेकर आता और आश्रम के दूसरे शिष्यों को सुनाता  एक शिष्य के दूसरे से बुराइ करता, चुगली करता और दूसरों के सामने अच्छा बनने का प्रयास करता। खुद के मुँह से ही खुद की तारीफ करता रहता और हमेशा ही खुद को गुरु के सामने सबसे बुद्धिमान और उत्तम शिष्य  साबित करने का प्रयास करता। वो खुद को सभी शिष्यों से अलग और श्रेष्ठ मानता था।

 

उसका कहना था कि मैं एक आमिर घर का लड़का हूँ। अगर मैं चाहता तो एक आरामदायक और सुविधाओं से भरा जीवन जी सकता था लेकिन मैं वह सब छोड़कर यहाँ आ गया क्योंकि मुझे सत्य की खोज करनी है। खुद को जानना है, जीवन को जानना है इसीलिए मेरा त्याग तुम सबसे बड़ा है। 1 दिन गुरु ने आश्रम के सभी शिष्यों को बुलाकर कहा आप सभी को अगले एक माह के लिए कोई न कोई संकल्प लेना है। इससे आपकी संकल्प शक्ति मजबूत होगी और आप में आत्म शक्ति का संचार होगा।

 

आप सभी अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार कोई सभी संकल्प ले सकते हैं और एक माह से पूर्व आप में से जीस जीस का भी संकल्प टूटता जाए वो अपनी पुरानी दिनचर्या में वापस आते जाए। सभी शिष्यों ने अपनी शक्ति के अनुसार छोटे बड़े संकल्प लिए और गुरु को अपने अपने संकल्प के बारे में बताकर वहाँ से चले गए। लेकिन वो बातूनी से खुद को सबसे अलग और बड़ा दिखाना चाहता था। इसीलिए वो सीधे गुरु की कुटिया में पहुँच गया और बोला मैं कोई छोटा मोटा संकल्प नहीं लेना चाहता।

 

बल्कि खुद की ही भांति एक बड़ा और महान संकल्प लेना चाहता हूँ। कृपया आप ही बताएं क्या संकल्प लेना चाहिए? मुझे उस बातों  ने  शिष्य  की यह बात सुनकर गुरु मुस्कुराये और बोले क्या तुम मेरे द्वारा दिए गए संकल्प को पूरा कर पाओगे? क्या तुम्हारे लिए उसे पूरा करना संभव होगा? नहीं, वो तुम्हारे लिए संभव नहीं है। तुम उसे पूरा नहीं कर पाओगे, इसलिए तुम खुद ही कोई संकल्प ढूंढ लो। शिष्य ने कहा नहीं गुरुदेव, आप जो भी संकल्प मुझे देंगे, मैं जरूर उसे पूरा करूँगा। आप बताइए तो सही।

 

गुरु  ने कहा,   ठीक है तो तुम अगले एक माह तक चुप रहोगे,  मुँह से एक शब्द भी नहीं निकालोगे। यही तो हमारा संकल्प है शिष्य ने कहा गुरुदेव ये भी कोई संकल्प है? ये तो बहुत ही आसान है। एक माह तक चुप्पी तो रहना है, कोई बड़ा संकल्प दीजिये जो मेरी योग्यता के लायक हो, जिसे पूरा करने में मुझे समस्या हो।

 

गुरु ने कहा, पहले तुम इस संकल्प को तो पूरा करके दिखाओ। शिष्य ने गुरु की बात मान ली। वह उसी समय चुप हो गया और पलटकर कुटिया से बाहर चला गया। उसे चुप रहना बहुत आसान लग रहा था। उसने 1 दिन तो जैसे तैसे चुप रहकर काट लिया लेकिन दूसरे दिन से उसके मन में ना बोलने का बोझ बढ़ने लगा। तीसरे दिन उसे भारीपन महसूस होने लगा और चौथे दिन उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी होने लगी क्योंकि आसपास आश्रम के सभी शिष्य एक दूसरे से बातें कर रहे थे, वो भी अपना पक्ष उनके सामने रखना चाहता था।

 

उनकी बोलती बंद कर देना चाहता था, लेकिन उसका संकल्प उसके आरे आ रहा था। इसी लिए वो पूरे दिन सिर्फ मुँह और आंखें बनाता रहता। इसी तरीके से कुछ दिन और बीते और वह  शिष्य बीमार पड़ गया। उसका सर  फटा जा रहा था। उसका खाने पीने तक का मन नहीं कर रहा था। वह सिर्फ बोलना चाहता था। वह गुरु के पास गया और उनके सामने बैठकर लिखकर उन्हें बताया, गुरुदेव मैं बोलना चाहता हूँ बिना बोले मुझे सांस नहीं आ रही, मेरा दम घुटता जा रहा है, मैं अंदर ही अंदर पागल हुआ जा रहा हूँ।

 

मैं क्या करूँ? संकल्प तोड़ दूँ क्या? यह पढ़कर गुरु मुस्कुराये और बोले, संकल्प तो तोड़ने के लिए ही होते हैं, लेकिन जो अपने संकल्प को पूरा कर लेता है, वही अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ा पाता है और जो अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ा लेता है, वह समझ और जागृति की राह पर आगे बढ़ जाता है। संकल्प का लेना भी तुम्हारे हाथ में था और इसे तोड़ना भी तुम्हारे ही हाथ में है। तुम्हारे बहुत से गुरु भाई अपने संकल्प को तोड़कर अपनी पुरानी दिनचर्या पर वापस आ चूके हैं। अगर तुम से नहीं हो पा रहा

 

तो तुम भी संकल्प तोड़कर अपनी पुरानी दिनचर्या पर वापस जा सकते हो। लेकिन याद रहे अगर आज तुम इस छोटे से संकल्प को नहीं संभाल पा रहे तो तुम अपनी बाकी की पूरी जिंदगी को कैसे संभाल सकोगे? मुझे इस पर शक है। बाकी फैसला पूरी तरह से तुम्हारे हाथों में है।

 

गुरु की यह बात शिष्य की  दिल में चोट कर गयी। वह बिना कुछ बोले वहाँ से वापस चला गया और खुद को अपनी कुटिया में बंद कर लिया। वह केवल अपने जरूरी कामों के लिए ही कुटिया से बाहर निकलता, बाकी सारे समय कुटिया के अंदर ही बैठा रहता। 15 दिन बीत चूके थे और आश्रम के लगभग सभी शिष्यों का संकल्प अब तक टूट चुका था, लेकिन उस वाचल्य शिष्य  संकल्प अभी भी जारी था। संकल्प लेने के बाद से अब तक उसने एक शब्द भी ना बोला था। सारा आश्रम हैरान था कि इतना बोलने वाला इंसान

 

चुप  कैसे हो गया? 15 दिन बीतने के बाद वह दोबारा अपने गुरु के पास गया और लिखकर बताया है हे गुरुदेव मैं बाहर से तो चुप हूँ लेकिन मेरे भीतर बहुत सी आवाजें हैं। बहुत सी चीख पुकार और शिकायतें हैं। मैं अंदर ही अंदर बात करता रहता हूँ। मेरा मन तरह तरह के प्रश्न पूछता रहता है। मैं बाहर से जितना मौन हूँ, भीतर से उतने ही शोर शराबे से भरा हुआ हूँ। मुझे सब हो रहा है। क्या मेरा संकल्प अभी भी जारी है? गुरु ने कहा हाँ, तुम्हारा संकल्प अभी भी जारी है।

 

लेकिन जब तक लोगों की ये आवाजें तुम्हारे कानों में पड़ती रहेंगी, तुम्हारा मन बोलता रहेगा, क्योंकि इसे तो आदत है बोलने की। तुम भले ही बाहर से चुप रहो, लेकिन तुम अंदर ही अंदर बोलते रहोगे। तुम्हें इन बातों से इन आवाजों से दूर जाना पड़ेगा।

 

शिष्य गुरु को प्रणाम कर वहाँ से चला जाता है और सुबह होते ही अपनी कुटिया छोड़कर जंगल की तरफ चला जाता है।

 

कई दिन बीत जाते हैं, संकल्प का समय भी पूरा हो जाता है, लेकिन वो उसी से लौट कर नहीं आता। आश्रम में सभी को डर था कि कहीं जंगली जानवरों ने उसे खाना लिया हो। इस बीच उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन वह कहीं नहीं मिला। सभी गुरु भाइयों ने मान लिया था कि जंगली जानवरों ने उसे अपना शिकार बना लिया है, लेकिन गुरु को ऐसा नहीं लगता था। 1 दिन आश्रम का एक शिष्य गुरु के पास आया और बोला, गुरुदेव उस वाचाल सी सी के साथ क्या हुआ होगा?

 

जानवरों ने उसे मार दिया होगा। गुरु ने कहा, हो सकता है कि जानवरों ने उसे अपना शिकार बना लिया हो लेकिन उसके ना लौटने की एक दूसरी वजह भी हो सकती है। शायद उसे वो मिल गया है जिसके लिए वह गया था। शिष्य ने पूछा गुरुदेव क्या ज्यादा बोलना इतना हानिकारक होता है? गुरु ने कहा, इंसान के जीवन के बहुत सारे दुखों में से एक दुख ये भी है कि वो कभी चुप नहीं रह सकता। हमेशा कुछ ना कुछ बोलता ही रहता है। सिर्फ हमारे बोलने के कारण हमारे आधे से ज्यादा दुख पैदा होते हैं।

 

परिवार के अधिकतर झगड़ों की वजह हमारा बेमतलब बोलना ही होता है। हम में से कोई भी चुप नहीं रहना चाहता। हम बस सामने वाले को सुनाई देना चाहते हैं। जो भी हमारे मन में है, सब निकालकर उसके मन में बैठा देना चाहते हैं, उसे समझा देना चाहते हैं कि देख तू गलत है और मैं सही। आखिर ये कहाँ तक उचित है?

क्योंकि दूसरा भी तो यही कर रहा है और इस तरीके से सब एक दूसरे की सड़ी गली बातों को ग्रहण कर रहे हैं। फिर समय के साथ उन्हीं बातों की परतों को गिरते रहते हैं और एक दूसरे को सुनाते रहते हैं। इस तरीके से सुनने और सुनाने का यह काम जिंदगी भर चलता रहता है, लेकिन इस नासमझी में हम खो देते हैं। अपना समय अपना जीवन, अपनी समझ और सबसे महत्वपूर्ण वो कीमती पल जो जिए जा सकते हैं जिनकों अनुभव किया जा सकता है जिनमें आनंद को प्राप्त किया जा सकता है।

लेकिन इसके बदले हमे मिलता क्या है? कुछ नहीं सब व्यर्थ और बर्बाद हो जाता है। इस पागलपन में हमने क्या खो दिया, इसका एहसास केवल कुछ ही लोगों को हो पाता है। बाकी लोग जैसे उन्हें अपने आने का पता नहीं, वैसे ही उन्हें अपने जाने का भी पता नहीं चल पाता। शिष्य ने कहा तो फिर इसका समाधान क्या है? गुरु ने कहा, पूरी जागरूकता के साथ अपने विचारों को देख यही एकमात्र तरीका है। सारी मानसिक समस्याओं का दोस्तों वर्तमान में रहकर पूरी जागरूकता के साथ अपना काम करना जिंदगी में चमत्कारिक बदलाव ला देता है। ऐसा कहना है फेमस जैपनीज़ जेन मास्टर सुंदरियों सुज़ुकी का जिन्होंने अपनी किताब, जेन माइंड बिगिनर्स माइंड में डिटेल से समझा रखा है कि कैसे एक व्यक्ति अपने रोज़ के कामों को करने के साथ भी अवेर्नेस यानी जागरूकता का अभ्यास कर सकता है और एक मेंटली स्टेबल एंड हैप्पी लाइफ जी सकता है।

उस वाचाल शिष्य को आश्रम छोड़कर गए हुए तीन महीने का समय बीत चुका था, लेकिन उसकी कोई खबर न थी। अब तक तो सभी गुरु भाइयों ने भी उसके वापस लौटने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन 1 दिन वो आश्रम लौट आता है। उसे देखकर सभी के आश्चर्य और खुशी का ठिकाना न रहा। लेकिन अब वो वो नहीं था जो यहाँ से गया था, वो कुछ और ही बन कर वापस आया था।

उसके अंदर एक गजब का बदलाव महसूस किया जा सकता था। उसके चेहरे पर एक गजब का ठहराव और आँखों में बड़ी शांति थी। आश्रम में आते ही सभी गुरु भाइयों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया और बाते करने लग गयी। वह भी अपने गुरु भाइयों से बातें करने लगा। उससे बात करने वाले सभी शिष्यों ने यह अनुभव किया कि अब वे पहले जैसा उतावला और बातूनी नहीं रह गया था। उसके मुँह से एक एक शब्द बहुत ही सुलझे हुए और मधुरता के साथ निकल रही थी। थोड़ी देर तक गुरु भाइयों से बात करने के बाद

यह सीधा गुरु की तरफ चला गया। उसने गुरु के चरण छुए और कहा, गुरुदेव क्या मैं अब भी मौन हूँ? क्या अब भी मेरा संकल्प जारी है? गुरु ने कुछ देर तक शिष्य  की आँखों में बड़े ध्यान से देखा और कहा, हाँ तुम अब भी मौन हो, तुम्हारे मुँह से एक भी शब्द निकल नहीं रहा और तुम्हारा संकल्प अभी भी जारी है।

शिष्य ने कहा, गुरुदेव जब मैं आश्रम से गया तो मैं मुँह से तो चुप था लेकिन मेरे अंदर बहुत सी आवाजें थी। मन में बहुत से प्रश्न थे और वो बंद नहीं हो रही थी तो मैं जंगल में और गहरा चला गया, इस उम्मीद से कि वह मुझे शांति मिले गी और मेरे मन की बक बक कम हो जाएगी। लेकिन मैं जितना एकांत में जाता गया, मेरे अंदर की आवाज उतनी ही तेज होती गई। मेरे भीतर की और पुरानी से पुरानी आवाज मुझे सुनाई देने लगी। तब जाकर मैंने महसूस किया।

मैं कितना गलत कर रहा था। जब मैं अपने परिवार वालों, दोस्त हूँ और गुरु भाइयों को बुरा भला कहता था तो उस समय मुझे लगता था कि मैं सही कह रहा हूँ। जब मैं गुरु भाइयों की एक दूसरे से चुगली करता और उनका मजाक बनाता तब भी मुझे यही लगता था कि मैं उनसे बेहतर हूँ और मैं सही कर रहा हूँ। लेकिन उस दिन मैंने पहली बार महसूस किया कि मैं कितना गलत बोलता था। काफी दिनों तक यह आवाजे यह शिकायतें मेरे अंदर चलती रही लेकिन धीरे धीरे करके 1 दिन ये सारी आवाजें

मेरे अंदर से समाप्त हो गई। अब मैं भीतर से भी मौन हो गया।

उस घने जंगल में बाहर से कोई बोलने वाला था नहीं और भीतर कोई आवाज शेष  बची नीं  थी। मैं उस दिन पहली बार मौन का सही अर्थ समझा। मेरे चारों तरफ बहुत शांति थी। हालांकि अभी भी कुछ आवाजें आ रही थी।

जो पहले भी आती थी लेकिन मैं उन्हें सुन नहीं पाता था। पर अब वह सभी आवाजें मुझे स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी। हवा के चलने की आवाज, चिड़ियों के चहकने की आवाज, पानी के बहने की आवाज, भब्रो  के गुनगुनाने की आवाज, ये सभी आवाजें मैंने पहली बार पूरे होशपूर्वक सुनी। अपने चारों तरफ इतनी शांति मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी तो इस शांति को भंग करने के लिए मैंने पहली बार अपने मुँह से कोई शब्द निकाला। मैं चिल्लाया हे  ईश्वर

ये कैसी शांति है? सभी कुछ इतना शांत क्यों है? ऐसा क्या हो गया? लेकिन मेरे चिल्लाने के बाद भी वो शांति भंग नहीं हुई। सब कुछ पहले के जितना ही शांत था, बाहर भी और भीतर भी।

हे गुरुदेव मैंने अपने गुरु भाइयों से बात की, मैंने आप से बात की मैं बोल रहा हूँ मैं चल रहा हूँ, मैं सब कुछ देख रहा हूँ लेकिन मैं अपने भीतर एक दम एकांत में हूँ, मौन में हूँ, भीड़ में होता हूँ तब भी भीतर से अकेला एकांत में होता हूँ। जब मैं खुद में भी शोर करना चाहता हूँ तब भी एकांत में ही होता हूँ, अब सब दिखाई पड़ने लगा है, सब सुनाई पड़ने लगा है।

गुरु ने कहा, जब तक हम बाहर की तरफ बोलते रहेंगे, भीतर अशांति ही रहे गी जिसदिन हम भीतर की तरफ मुड़ जाएंगे। फिर बाहर हमारे मुँह से कुछ भी निकले, हम शांत ही रहेंगे। दुनिया में जितनी भी बुराइयां हैं, ज्यादातर हमारे बोलने से ही उत्पन्न होती है क्योंकि हम चुप रहना नहीं चाहते। हम जितनी जरूरत है उससे कहीं ज्यादा बोलते है। हम सामने वाले को सुनना नहीं चाहते बल्कि उसकी बोलती बंद कर देना चाहते हैं। उसे समझा देना चाहते हैं कि मैं कौन हूँ दिखा देना चाहते हैं उसे अपनी सारी सामर्थ

बस यही हमारी जिंदगी का मकसद बन कर रह जाता है। हमारी सारी ऊर्जा इस व्यर्थ के बोलने में बर्बाद होती रहती है। ऐसे पति पत्नी का जीवन दुखों से भर जाता है, जो हमेशा एक दूसरे को सुनाने में लगे रहते हैं। कभी एक दूसरे को सुनना नहीं चाहते समझना। और चुप रहना तो कभी सिखा ही नहीं हैं क्योंकि चुप रहना उन्हें छोटा महसूस करवाता हैं दुनिया का सभी लड़ाईयो कारन हमारा बोलना ही इसीलिए सिर्फ उतना ही बोलना चाहिए जितना जरुरी हो क्योंकि व्यर्थ का बोलना उर्जा का नस्त करना हैं और ये बोलना ही हमें कभी अपने भीतर की लौटने नहीं देता क्योंकि ये बहार की ओर खीचकर रखता हैं और बाहर हैं ही क्या इस  संसार के अलावा लेकिन अगर भीतर संसार की ओर मुरना है तो इस मुह को बंद ही रखना चाहिए इसीलिए जितने भी बुद्ध हुए आत्म ज्ञानी हुए वो सभी एकांत की ओर भागे ताकि उन्हें ज्यादा बोलना न पड़े ज्यदा सुनना ना पड़े ओ एकांत रहे और शांत रहे

इसीलिए आसानी से भीतर की यात्रा कर पाए लेकिन अगर कोई चाहे तो कोई संसार में रहकर भी एकांत में रह सकता हैं शांत रह सकता हैं लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी उर्जा बचानी होगी जिसे वो अब तक अपने व्यर्थ शब्दों में बर्वाद कर रहे थे दोस्तों इस कहानी के सिख यही हैं की व्यर्थ का बोलना उर्जा को नस्त करना हैं और यह बोलना ही हमें अपने भीतर को ओर लौटने नहीं देता क्योंकि यह बाहर की ओर झुकाय रहता है और जिन्हें भीतर की यात्रा करनी है उन्हें अपने मुह को बंद ही रखना चहिए मुझे उमीद हैं आपको ये पसंद आई होगी और कुछ सिखने को मिला होगा अवेयरनेस को प्रस्टिक अपने जेन माइंड जगाने के लिए आप हमारे चैनल को सब्सक्राइब कर सकते हैं और लाइक कर सकते हैं मिलते हैं नेक्स्ट विडियो में धन्यवाद  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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