स्त्री के प्रति आकर्षण को कैसे खत्म करें|Buddhist Story in Hindi
एक बार
एक जवान लड़का गौतम बुद्ध के पास आता है और कहता है बुद्ध मेरे मन में इतने अश्लील
विचार क्यों आते हैं? मेरे मन में अक्सर काम वासना के विचार चलते रहते हैं, जिनके बारे में सोच सोच कर मैं अपना बहुत सा समय और ऊर्जा बर्बाद कर देता
हूँ, जिनकी वजह से मैं शांत नहीं रह पाता और हमेशा ही विपरीत
लिंग के प्रति आकर्षण महसूस करता हूँ। बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, क्या तुम्हें पता है कि काम वासना होती क्या है? लड़के
ने कहा बुद्ध।
मुझे
ये तो नहीं पता कि काम का मतलब क्या है, लेकिन ये जो कुछ भी है बहुत बुरी है। बुद्ध
ने कहा सबसे पहले तो तुम ये समझो कि प्राकृतिक रूप से जो भी हमारे अंदर है वो बुरा
नहीं है। हमारे जीवन में उसकी कुछ ना कुछ जरूरतें हैं। वासना एक प्रकार की भावना
है जो हमें किसी ना किसी चीज़ की कमी का अहसास दिलाती है। फिर हम उस कमी की पूर्ति
के लिए उस चीज़ की तरफ आकर्षित होना शुरू कर देते हैं जैसे अगर किसी के पास धन की
कमी है तो उसके अंदर धन के प्रति आकर्षण
यानी
धन की वासना उत्पन्न हो जाएगी तो वासना कुछ और नहीं बल्कि एक प्रकार की कमी एक
प्रकार की जरूरत का एहसास है और जब यह जरूरत शारीरिक हो तो हम इसे काम वासना कह देते
है। लड़के ने कहा बुद्ध ये तो समझ में आ गया कि काम वासना का मतलब क्या है? लेकिन यह हमारे अंदर आती कहाँ
से है? ये उत्पन्न कैसे होती है? बुद्ध
ने कहा, कहीं से आती नहीं है बल्कि यह प्राकृतिक रूप से
हमारे अंदर ही मौजूद है और इसका होना जरूरी भी है क्योंकि यही
मानव
जाति के विस्तार का आधार है। लड़के ने कहा बुद्ध जब काम वासना प्राकृतिक रूप से
हमारे अंदर मौजूद है, तब फिर लोग काम वासना को गलत क्यों बोलते हैं? बुद्ध
ने कहा, यह एक बहुत बड़ी समस्या है कि लोगों ने काम वासना को
गलत नज़रिए से देखना शुरू कर दिया है। इसे दबाने की कोशिश करना शुरू कर दिया है।
काम को होना गलत नहीं है, बल्कि काम वासना का बेलगाम होना
गलत है। केवल उसी के बारे में हमेशा सोचना केवल उसी के लिए जीना केवल उसी को अपने
जीवन का लक्ष्य बना लेना गलत है।
बुद्ध
ने उस लड़के से पूछा तुम्हें क्या लगता है? क्या जानवरों में भी काम वासना होती है?
लड़के ने कहा हाँ, बुद्ध जरूर होती है क्योंकि
आखिर जानवरों को भी तो अपनी पीढ़ी आगे बढ़ानी है। बुद्धि ने कहा, फिर हम जानवरों के काम वासना को गलत क्यों नहीं कहते? लड़के ने कहा पता नहीं बुद्धि आप ही बताएं। बुद्ध ने कहा, क्योंकि जानवर अपनी काम वासना का उपयोग सिर्फ संतति उत्पन्न करने के लिए
करते हैं, उससे खुशी प्राप्त करने के लिए नहीं और ना ही सुख
भोगने के इरादे से, क्योंकि जानवरों को प्रकृति ने
इतनी
सोचने समझने की क्षमता नहीं दी कि वो अपनी काम वासना को अपने क्षणिक सुख का आधार
बना सके। जबकि हम इंसान अपनी सोचने समझने की क्षमता का उपयोग करके प्रकृति में पाई
जाने वाली हर चीज़ का अपने सुख और आनंद के लिए उपयोग करने का प्रयास करते हैं। हम
इंसानों ने काम वासना के साथ भी यही किया है। इसे अपने आनंद और भोग का आधार बना
लिया है, जिसे भावना को प्रकृति ने मानव
जाति का अस्तित्व बनाए रखने के लिए हमारे अंदर डाला था। उसे हमने जीवन का सर्वोपरि
लक्ष्य बना रखा है।
और
इंसानी काम वासना का ये बेलगाम हो ना ही उसके गलत होने का कारण है। लड़के ने कहा
बुद्ध लेकिन यह काम वासना हावी होती क्यों है? इसके बेलगाम होने का कारण क्या है? बुद्ध ने कहा, काम वासना के बेलगाम होने के चार बड़े
कारण हैं जिसमें से पहला कारण है जीवन में किसी बड़े उद्देश्य का ना होना। वो देने
उस लड़के से पूछा क्या जब तुम किसी काम में व्यस्त होते हो तब भी तुम्हारे दिमाग
में विचार आते हैं? लड़की ने कहा नहीं बुद्ध, जब मैं
व्यस्त होता हूँ तो मेरे दिमाग में
विचार
नहीं आते। बुद्ध ने कहा, हमारा दिमाग एक बार में सिर्फ एक चीज़ के बारे में ही सोच सकता है। इसलिए
जब हमारे दिमाग में कोई दूसरे विचार चल रहे होंगे तो अश्लील विचार आ ही नहीं सकते।
अगर हमारे जीवन में कोई बड़ा और स्पष्ट लक्ष्य है और अगर हम उस लक्ष्य के प्रति
पूरी तरीके से समर्पित है तो हमारे पास कभी इतना समय ही नहीं होगा कि यह फालतू
विचार हमारे मन में घर कर सके। और अगर ऐसे विचार उठते भी है तो हमारे मजबूत लक्ष्य
के विचार इन्हें आसानी से
हमारे
मन से भी विष्ठापिथ कर देंगे। बुद्ध ने कहा, काम वासना के बेलगाम होने का दूसरा कारण है।
समाज
के द्वारा इसे गलत बताकर दबाए जाने की कोशिश करना। लोगों के एक बड़े तबके ने
कामुकता को हमेशा ही सबकी नजर से देखा है और इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमने अपने
यौन अंगों को शरीर के बाकी अंगों की तरह स्वीकार नहीं किया। जबकि हमारे यौन अंग भी
हमारे बाकी अंगों जैसे हाथ, पैर, मुँह आदि के सामान ही बस एक अंग है जो अपना काम
करते हैं, जिसके लिए प्रकृति ने उन्हें बनाया है। लेकिन हमने
इन प्रजनन अंगों को कुछ ज्यादा ही रहस्यमय बना दिया है और जब कोई चीज़
रहस्यमय
बन जाती है तो उसके प्रति लोगों की एक अलग ही रुचि जागृत हो जाती है जिसकी वजह से
लोग जाने अनजाने में काम वासना के प्रति आकर्षण महसूस करते हैं। बुद्ध ने आगे कहा, जब किसी विचार को दबाने का उसका दमन करने का
प्रयास किया जाता है तब वह विचार और मजबूती के साथ उभर कर आता है और यही काम वासना
के विचारों के साथ भी किया जा रहा है। बुद्ध ने कहा, अगर मैं
तुमसे कहूं कि आम के बारे में मत सोचना तो तुम्हारे मन में पहला चित्र किस चीज़ का
आया? लड़के ने कहा वो दिन
मेरे
मन में पहला चित्र आम कहीं आया। बुद्ध ने कहा, इसी प्रकार जब हम अश्लील विचारों को जबरदस्ती
रोकने का प्रयास करते हैं तो वह और मजबूती के साथ हमारे अंदर होते हैं। इसलिए कभी
भी विचारों को दबाने की कोशिश ना करे। लड़के ने कहा हाँ, ये
तो मैंने भी महसूस किया है। बुद्ध ने कहा इंसानों में कामुकता के हावी होने का
तीसरा कारण है हमारा अपने विचारों के प्रति जागरूक ना हो ना हमारे मन में कैसे
विचार चल रहे हैं, हम इस पर कभी ध्यान ही नहीं देते। हमारे मन
में उठने वाले विचारों के बारे में
एक
अनोखी बात यह है कि जब हम किसी एक चीज़ के बारे में विचार करते हैं तो हमारा मन उसी
से संबंधित और भी विचार हमारे सामने रखना शुरू कर देता है और फिर ऐसे ही हमारे मन
में विचारों की एक श्रृंखला बन जाती है जिसपर हम उलझकर रह जाते हैं।
ठीक
ऐसा ही होता है। अश्लील विचारों के साथ हमने एक बार किसी को देखकर अपने मन में एक अश्लील
विचार पैदा किया। फिर हमारा मन अपने आप ही
इन विचारों की एक श्रृंखला बना देता है जिनके बारे में सोच सोचकर हम अपनी बहुत सी
ऊर्जा और समय बर्बाद कर देते है। इसलिए पूरी जागरूकता के साथ अपने अंदर उठने वाले
विचारों पर ध्यान देना जरूरी है। बुद्ध ने कहा, अश्लील विचारों के हावी होने का चौथा कारण है
बुरी सोच और अश्लील विचारों वाले लोगों की संगति करना। कई बार ऐसा होता है।
कि
कामुकता हमारे अंदर नहीं होती,
लेकिन कुछ असली लोगों के साथ रहने की वजह से यह हमारे अंदर हावी हो
जाती है। लड़के ने कहा, हाँ, ये बात तो
मैंने खुद महसूस की है। बुद्ध ने कहा, इसलिए बुरे विचार
वालों और असली लोगों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। लड़के ने कहा, बुद्ध ये तो समझ में आ गया कि
कामुकता हावी कैसे होती है, लेकिन इसे हावी होने से रोका
कैसे जा सकता है? बुद्धि ने कहा, सबसे
पहले तो तुम ये समझो कि कामवासना की ऊर्जा
को रोका नहीं जा सकता। इसे सिर्फ
रूपांतरित
किया जा सकता है और इस ऊर्जा को रूपांतरित करने के दो तरीके हैं। पहला है प्रेम और
दूसरा है ध्यान। जब हम सच्चे प्रेम में होते हैं तो हमारे अंदर के कामुकता की
ऊर्जा हमारी खुशी और हमारे आनंद में परिवर्तित हो जाती है। लेकिन ज्यादातर लोग
शारीरिक आकर्षण को ही प्रेम मानते हैं जो कि ऊर्जा काव्य करता है, रूपांतरण नहीं काम वासना की
ऊर्जा को शरीर के अंदर ही रूपांतरित करने का सबसे सफल तरीका है ध्यान ध्यान के
माध्यम से आप अपने अंदर स्थित आनंद के
उस
केंद्र में स्थापित हो जाते हैं,
जिसके सामने दुनिया का हर भोग विलास फीका लगने लगता है। ऐसा नहीं है
कि आप ध्यान में उतरने के बाद वो सब सोचने और करने में सक्षम नहीं होते बल्कि आप
उससे ऊपर उठ चूके होते हैं और फिर ये सब हरकते आपको छोटी और बचकानी लगने लगती है। लड़के ने कहा,
लेकिन ध्यान की शुरुआत कहाँ से करें? बुद्ध ने
कहा, सबसे पहले तुम खुद के साथ अकेले में समय बिताना शुरू कर
दो, क्योंकि जो इंसान जिसके साथ सबसे ज्यादा समय बिताता है,
वो
उसको सबसे ज्यादा जानने लगता है और जब तुम खुद को जानना शुरू कर दोगे तो ये सारे
भौतिक सुख तुम्हें छोटे लगने लगेंगे और फिर 1 दिन ऐसा भी आएगा जब तुम्हारे चाहे बिना
तुम्हारे दिमाग में किसी भी प्रकार के विचार उठने बंद हो जाएंगे।
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