मन में अश्लील विचार नहीं आएंगे |Moral Story in hindi

 

एक सन्यासी जीस दिन मरा उसी दिन एक वैश्य भी मरी दोनों ही आमने सामने रहते थे। देवदूत वाले लोग लेने आए तो सन्यासी को नरक की तरफ ले जाने लगे और वेश्या को स्वर्ग की तरफ सन्यासी ने कहा रुको, रुको लगता है तुम से कोई भूल हो गई? यह क्या उल्टा पुल्टा हो रहा है मुझ सन्यासियों को नरक की तरफ और वेश्या को स्वर्ग की तरफ क्यों भाई जरूर आपको ऊपर से संदेश लेने में कोई भूल चूक हो गई है। संसार का इतना बड़ा काम है भूल चूक हो सकती है जब यह छोटे मोटे राजा इतनी बड़ी बड़ी भूलें कर देते हैं।

तो पूरे विश्व की व्यवस्था में भूल हो जाना कुछ आश्चर्य की बात नहीं है। इसलिए तुम लोग फिर से पता लगा कर आओ जरूर मुझे स्वर्ग और इस वैश्य  को नर्क ही मिला होगा। सक  तो देवदूतों को भी हुआ। उन्होंने कहा, भूल कभी हुई तो नहीं, लेकिन मामला तो साफ दिखता है कि यह वैश्य  है और तुम सन्यासी हो। इसे नर्क और तुम्हें स्वर्ग ही मिलना चाहिए, लेकिन भूल हमसे हुई नहीं। सन्देश हमने साफ साफ सुना था पर सन्यासी मानने को तैयार नहीं था इसलिए वे गए लेकिन फिर से खबर आयी की कोई भूल चूक नहीं हुई।

जो होना था वही हुआ है। वैसे आपको स्वर्ग में ले जाओ, सन्यासी को नरक में डाल दो और अगर ज्यादा ही जिद करे तो उसे समझा देना कि इन कारणों की वजह से उसे नर्क में डाला जा रहा है। देवदूत फिर से सन्यासी को नरक की तरफ ले जाने लगे, लेकिन सन्यासी जिद पर अड़ गया तो देवदूतो  को कारण बताना पड़ा। कारण यह था कि सन्यासी रहता तो मंदिर में था, लेकिन सोचता सदा वैश्य की था। भगवान की पूजा तो करता था, आरती भी उतारता था, लेकिन मन में प्रतिमा वैश्या की होती थी और जब वेश्या के घर में रात

राग रंग होता, बाजे बजते, नाच होता, हँसी के ठहाके उठते, नशे में डूबकर लोग उन्माद होते तो उसको ऐसा लगता था जैसे कि मैंने अपना जीवन व्यर्थ गंवाया। आनंद जब वहाँ है तो मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? इस निर्जन में बैठा इस खाली मंदिर में ये पत्थर की मूरत के सामने पता नहीं, भगवान है भी कि नहीं। उसे हमेशा यही से पैदा होता और रात जागकर वह करवटें बदलता और वैसे आप को भोगने के सपने देखता, लेकिन वैसा की हालत ठीक इसके विपरीत थी। वह थी तो वैश्य

लोगों को रिझाती भी नाचती भी, पर मन उसका सदा मंदिर में लगा रहता। जब जब मंदिर की घंटियां बजती तो वह सदा यही सोचती कि कम मेरे इस भाग्य का उदय होगा कि मैं भी मंदिर में प्रवेश कर सकूंगी। मैं अभागन मैंने तो अपना पूरा जीवन इस गंदगी में ही बिता दिया। अगले जन्म में है परमात्मा भले ही मुझे मंदिर की पुजारी मत बनाना, लेकिन मुझे मंदिर की सीढ़ियों की धूल भी बना देगा तो भी चलेगा। मैं उनके पैरों के नीचे पड़ी रहूंगी। जो पूजा करने आते हैं उतना ही बहुत है मेरे लिए जब मंदिर में

बंदूक की धूप की तो है आनंदमग्न हो जाती। वह कहती यह भी क्या कम सौभाग्य है कि मैं अभी भी मंदिर की इतनी निकट हूँ। बहुत से लोग हैं जो मंदिर से दूर रहते हैं। माना की मैं बहुत बड़ी पापी हूँ, लेकिन कम से कम मेरे पास इतना सौभाग्य तो है कि मैं रोज़ सुबह शाम मंदिर के बाहर से दर्शन कर सकूँ। हर रोज़ जब पुजारी मंदिर में पूजा पाठ और आरती किया करता तो मैं आंख बंद करके चुपचाप बैठ जाती और पूरे ध्यान से मंदिर से आने वाली आरती पूजा की आवाजों को सुनना करती और मन ही मन अपने कर्मों के लिए पश्चाताप करती वह इस्वर से क्षमा मागती

पुजारी वैश्य की सोचा करता और वैश्य पूजा की सोचती पुजारी नरक चला गया। वैसे स्वर्ग चली गयी जैसी आपकी सोच होगी, वैसा ही आपका जीवन होगा और जैसे आपके कर्म होंगे वैसे ही आपको भोगना होगा। असली सवाल ये नहीं की हम बाहर से क्या है? असली सवाल तो ये है कि हम भीतर से क्या है? भीतर से ही सही निर्णय होता है। गौतम बुद्ध ने भी कहा है तुम्हारे विचार ही तुम्हारे कर्म है। अतः अगर हमारे विचार ही बुरे है तो कर्म तो बुरे होने ही है।

हमारे विचारों में बड़ी शक्ति है। ये विचार ही है जो एक इंसान को महान और दूसरे को शैतान बना देते हैं। इसलिए विचारों की शक्ति को समझना और इन विचारों पर ध्यान देना बेहद आवश्यक है।

हमारी सकारात्मक सोच, सकारात्मक संवाद और सकारात्मक कार्यों का असर हमें सफलता की ओर अग्रसर करते हैं। वही निराशा तथा नकारात्मक संवाद व्यक्ति को अवसाद में ले जाते हैं क्योंकि विचारों में बहुत शक्ति होती है। हम क्या सोचते हैं इस बात का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर होता है। इसलिए अक्सर निराशा के क्षणों में मनोवैज्ञानिक भी सकारात्मक संवाद एवं सकारात्मक कहानियों को पढ़ने की सलाह देते हैं। हमारे सकारात्मक विचार ही मन में उपजे निराशा के अंधकार को दूर करके

आशाओं के द्वार खोलते हैं। स्वामी विवेकानंद जी कहते है, हम वो है जो हमारी सोच ने हमें बनाया है। इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते हैं क्योंकि शब्द गौण है किंतु विचार दूर तक यात्रा करते हैं।

हमारा व्यक्तित्व विचार और चिंतन से बनता है। यह हमारे जीवन के अबतक के चिंतन और समस्त विचारों का प्रतिफल होता है। हम विचारों द्वारा ही उन्नति कर जीवन के उच्चतम लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। जीवन वैसा ही होता है जैसा हमारे विचार उसे बनाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह विचारों का दर्पण हैं। इस प्रकार विचार जीवन की आधारशिला है। हमारे पास कितना भी धन, दौलत और समृद्धि क्यों ना हो परंतु यदि हमारे विचार और चिंतन में हर समय धन की लालसा बनी रहती है तो हमसे बड़ा गरीब इस दुनिया में कोई नहीं मिलेगा।

इसके विपरीत हम फकीर होते हुए भी यदि संतोषी स्वभाव के हैं तो सुखी जीवन बिता सकते हैं। भय और शंका के विचार रहने पर हम किसी भी कार्य को करने से पहले ही असफलता की शंका से ग्रस्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में हमें सफलता कैसे मिल सकती है? जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए विचारों में सकारात्मक और दृढ़ता का होना बहुत ही आवश्यक है। विषम परिस्थितियों में भी संतुलित, मानसिक स्थिथि और रचनात्मक सोच द्वारा हम सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं। नकारात्मक सोच होने पर हमारे अंदर

प्रत्येक गलती के लिए अपने को दोषी समझने की आदत बन जाती है। इस स्थिति से विचार शक्ति द्वारा ही निकाला जा सकता है। मनुष्य सदैव क्रियाशील रहता है। उसके कर्म उसकी भावनाओं के साथ विचार की सख्ती का गहरा संबंध है। मन एक कार्यशाला है जिसमें ना केवल चिंतन होता है बल्कि विचारों का उदय भी होता है। विचारों की शुद्धता पर पुष्टता और उत्कृष्टता के लिए मन का शुद्ध और पवित्र होना बहुत ही आवश्यक है। मन को शुद्ध करने के लिए संपूर्ण जीवन में

यानी मनुष्य के समस्त कार्ययो  वो व्यवहार में सत्य का होना। परमावश्यक दुनिया में यदि कोई व्यक्ति महान बना है तो उसके पीछे उसकी विचार शक्ति रही है। राम, कृष्ण, महावीर, गौतम बुद्ध आदि जीतने भी महापुरुष हुए हैं। वे अपने उत्कृष्ट विचारों के कारण ही अनेक बलिदान कर महान पद प्राप्त कर सके थे। हमें सुखी, समृद्ध और पवित्र जीवन के लिए विचार शक्ति को हमेशा शुद्ध और सशक्त बनाना चाहिए।  

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